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लेखनी प्रतियोगिता -29-Nov-2022

झुकी पलकें


मन मेरा भारी है
 झुकी पलकें है
और आसमान भीग
कर काली चादर ओढ़े
अपना मुख छुपाए मेरे 
वजूद से मुख मोड़ कर 
खड़ा हो आज किसी 
ओर की पीठ थपथपा रहा है।
आंखें नमी से भीगी हुई 
झुकी पलकों का दामन 
थामे रूढ़ी यादों को मनाने
चला है शाम के सहारे।
झूकी पलकों के 
सामाने आज आसमान भी 
अपना शीश झुका रहा है।


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6 Comments

Sachin dev

30-Nov-2022 03:35 PM

Well done

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Rajeev kumar jha

30-Nov-2022 11:48 AM

बहुत खूब

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Niyati Pandey

30-Nov-2022 10:49 AM

Very nice

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